
सुखद एवं सौभाग्यशाली दाम्पत्य जीवन की कामना पूर्ति हेत
...ु
महिलाओं तथा इच्छित श्रेष्ठ वर प्राप्ति हेतु अविवाहित कन्याओं-युवतियों
द्वारा राजस्थान में चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल तृतीया तक अठारह
दिन तक चलने वाली गणगौर पूजा का राजस्थान में अति विशिष्ठ महत्व है l
ईसर-गणगौर के रूप में की जाने वाली यह पूजा वस्तुत: शिव-पार्वती की ही
पूजा है l नव विवाहित युवतियों के लिए विवाहोपरांत प्रथम वर्ष में यह पूजा
आवश्यक मानी जाती है l होलिका दहन की भस्म और किसी तालाब-सरोवर के जल से
ईसर-गणगौर की प्रतिमाएं बनाई जाती हैं तथा उन्हें वस्त्रालंकारों से
सुसज्जित किया जाता है l पूजा के लिए हरी दूर्वा,पुष्प,और जल लाने के लिए
महिलाएं प्रति दिन प्रात: सुमधुर गीत गाती हुई किसी उद्यान में जाती हैं
तथा सजे हुए कलशों में जल भर कर लाती हैं तथा कुमकुम, मेहंदी, तथा काजल
आदि सौभाग्य की प्रतीक वस्तुओं से ईसर-गणगौर की पूजा करती हैं l यह पूजा
मन्त्रों से नहीं बल्कि पारंपरिक गीतों से की जाती है l शीतलाष्टमी के दिन
पुरानी प्रतिमाओं के साथ सुसज्जित नई काष्ठ की प्रतिमाएं भी स्थापित की
जाती हैं l सायंकाल में गणगौर की बिन्दोरियां भी निकाली जाती है l चैत्र
शुक्ल तृतीया को प्रात:काल की पूजा के पश्चात सायंकाल में मंगल गीतों के
साथ इन पूजित प्रतिमाओं का किसी तालाब,सरोवर या कुएँ पर जाकर विसर्जन किया
जाता है l राजस्थान के राजघरानों द्वारा भी इस दिन पूरे राजसी ठाठ और
लवाजमों , बैंड बाजों के साथ गणगौर की सवारी निकाली जाती है जो एक मेले का
रूप धारण करती है l जयपुर में निकलने वाली सवारी न केवल स्थानीय लोगों
बल्कि विदेशी सैलानियों के लिए भी विशेष आकर्षण का विषय है l आजकल विभिन्न
महिला संगठन,समितियां अथवा आधुनिक महिला क्लब भी इस पर्व को धूम धाम के
साथ मनाते हैं जिनमे नृत्य-गायन के अतिरिक्त अनेक प्रतियोगिताएँ भी
सम्मिलित होती हैं l